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गुरुवार, मई 21, 2020

अश्‍वत्थामा

क्या अश्‍वत्थामा आज भी जिन्दा है   



 अश्‍वत्थामा का जन्म द्वापर युग में हुआ था वे गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र थे अश्‍वत्थामा का बचपन बहोत ही दुखो से गुजरा उनके जन्म के समय समय द्रोणाचार्य के पास अपनी पत्नी और पुत्र के पालन पोसन के लिए पर्याप्त धन नहीं था,गुरु द्रोणाचार्य ने पांडवों को अश्त्र-शस्त्र की विद्या दी थी, अश्‍वत्थामा भी अपने पिता की भांति अश्त्र -शस्त्र में निपुण था,अश्‍वत्थामा ने युद्ध की कला अपने पिता से नहीं अर्जित की थी उन्होंने और कई महपुरुसो जैसे परसुराम .दुर्वासा ,भीष्म .कृपाचार्य आदि से भी ली थी भगवन श्री कृष्णा के सामान अश्‍वत्थामा भी ६४ कलाओ और १८ विद्याओ में भी निपूर्ण था परन्तु महाभारत के युद्ध में गुरु द्रोणाचार्य ने और  अश्‍वत्थामा ने हस्तिनापुर राज्य के प्रति अपनी निष्ठा होने के कारन युद्ध में कौरवों का साथ दिया था,वह एक माहान योद्धा था  एक बार भीष्मपितामह ने उसकी प्रसंशा में कहा था की ''अश्‍वत्थामा  महारथी है धनुर्धारियों में श्रेष्ठ है विचित्र युद्ध करने वाले और विचित्र प्रहार करने वाले युद्ध में तो मनो यमराज जान पड़ते है किन्तु उनमे एक दोस भी है उनको अपना जीवन अति प्रिय है मृत्यु से दर के कारन वे युद्ध से जी चुराते है इस कारन न तो उन्हें रथी  मानता हु न तो अतिरथी'' महाभारत के युद्ध में गुरु द्रोणचार्य और  अश्‍वत्थामा को हराना मुश्किल हो रहा था तब भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर के साथ मिलकर कूटनीति का सहारा लिया और युद्ध में ये बात फैला दी के अश्‍वत्थामा मारा गया यह सुनकर गुरु द्रोणचार्य बिना सत्य जाने पुत्र के मृत्यु वियोग में शस्त्र छोड़कर जमींन पर बैठ गए तभी द्रुपत पुत्र ध्रिस्त्धुम्न ने उनका वध कर दिया पिता के मृत्यु से अश्‍वत्थामा विचलित हो गया और पांडवों के सभी पुत्रो का वध कर दिया तथा पांडव कुल को पूर्ण समाप्त करने के लिए उत्तरा के गर्भ मे पल रहे अभिमन्यु के पुत्र परिक्छित को मरने के लिए बर्ह्माश्त्र चलाया तब भगवान श्री कृष्ण ने परिक्छित को बचाने के लिए दंड स्वरुप अश्‍वत्थामा के माथे पर लगी मणि निकल कर उसे तेजहीन कर दिया और उसे शाप दिया की वो युगो-युगो तक भटकता रहेगा,
माना जाता है कि  अश्‍वत्थामा का वजूद आज भी है मध्य प्रदेश में बुरहानपुर से २० किमी दूर असीरगढ़ किले में स्तिथ भगवान शिव का मंदिर है जहाँ  अश्‍वत्थामा आज भी पूजा करने आता है और पूजा करने से पूर्व किले के तालाब में स्नान करता है,वहां के निवासी  अश्‍वत्थामा से जुडी कई कहानियां सुनाते है उनके अनुसार  अश्‍वत्थामा को जिसने भी देखा वो पागल हो गया गांव वाले अश्‍वत्थामा से मिलते जुलते वयक्ति के देखे जाने का दावा करते दावा सिर्फ देखे जाने का नहीं दावा ये के जिसने भी उसे देखा वो या किसी न किसी बीमारी से उसकी मृत्यु हो गई या जो जीवित बचा भी उसे या तो लकवा मार गया या तो पागल हो गया
, अश्‍वत्थामा के भटकने का उल्लेख मध्य प्रदेश के ही जबलपुर शहर में गौरीघाट नर्मदा नदी के किनारे भी मिलता है कहा जाता है  अश्‍वत्थामा कभी -कभी अपने मस्तक के घाव के लिए तेल व हल्दी कि मांग करते दिखाई देते है इस बात में कितनी सच्चाई है ये कहना  मुश्किल है!  

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