सच्ची कहानिया
किसी भी मनुस्य का अस्तित्व दुनिआ में तब मन जाता है जब वह जिन्दा होता है और हमें दिखाई देता है पर कुछ ऐसा भी है जो आँखों से दिखाई तो नहीं देता पर उनका अस्तित्व इस दुनिया में है और कभी-कभी वो दिखाई भी देते है और सुनाई भी देते है,मनुस्य की हर गतिविधि उसकी आत्मा द्वारा होती है बिना आत्मा के मनुस्य का शरीर मिट्टी मात्र है किसी को नहीं पता मनुस्य की मृत्यु के बाद आत्मा कहा जाती है इसका उत्तर कोई नहीं दे सकता है,बहोत से ऐसे लोग होंगे जिन्होंने अपने परिजन या दोस्त या किसी और की मृत्यु के बाद उस मृत की आत्मा को देखा या महसूस किया होगा या अचानक कोई ऐसी घटना घटी होगी जो समझ के परे हो,हम ऐसी ही कुछ सच्ची कहानीया आपके साथ सांझा करने जा रहे है..
आत्महत्या
ये बात १९८४ की है विशुन जो एक इंजीनियर था उसका तबादला दार्जिलिंग में हुआ था विशुन अपने पत्नी अपने दोनों बच्चो के साथ दार्जिलिंग के एक बंगले में रहने आया जिस दिन वो लोग वहाँ पहुंचे उसी दिन विशुन को ऑफिस के काम से दो दिनों के लिए शहर से बहार जाना पड़ा,आरती सफर से बहोत थक चुकी थी सारा दिन घर में बहुत काम भी था और उस दिनों वहाँ लाइट भी बहोत कटती थी दिन गुजरने के बाद रात को सोते समय आरती ने शीशे का लैंप जलाया और लैंप उसी कमरे में रख कर बच्चो के पास सो गई सुबह आरती उठती है और बरामदे में जाकर देखती है वहाँ लैंप गिरा पड़ा है उसका सीसा टुटा है और तेल लैंप से बाहर गीरा पड़ा है आरती को थोड़ा अजीब तो लगा फिर उसने बात पर ज्यादा जोर नहीं दिया दूसरे दिन भी ऐसा ही हुआ आज आरती को पूरा याद था की उसने लैंप कमरे में रखा था फिर ये बरामदे में कैसे आ जाता है आरती सारा दिन यही सोचती रही उसी दिन विशुन वापस आगया पर आरती ने उसे कुछ नहीं बताया रात को खाने के बाद आरती बच्चो के साथ सोने चली गई विशुन को कुछ काम था वो निचे सीड़ी वाले कमरे में बैठ कर काम करने लगा आधी रात हो गई थी विशुन काम में मगन था अचानक लाइट चली गई विशुन ने खिड़की के बहार देखा चारो तरफ लाइट थी उसने सोचा आरती जिसे विशुन का देर रात तक काम करना पसंद नहीं था उसी ने बरामदे की मेन स्वीच ऑफ कर दी होगी विशुन ने आवाज लगाई आरती तुमने लाइट ऑफ़ की है क्या बरामदे से आवाज आई हा विशुन ने बोला प्लीज थोड़ी देर और काम कर के सोने जाऊंगा लाइट जला दो प्लीज और लाइट आ गई विशुन फिर काम करने लगा थोड़ी देर बाद ऐसा फिर हुआ विशुन ने फिर से पूछ आरती प्लीज मुझे काम करने दो लाइट तुमने बंद की है क्या फिर से आवाज आई हा इस बार विशुन सोचने लगा आरती तो ऊपर के कमरे में सोने चली गई थी वो नीचे कब आई और आई तो दिखी क्यों नहीं,क्युके बरामदे का रास्ता उसी कमरे से होकर जाता है जहा विशुन बैठा था विशुन बहुत कुछ सोचने लगा फिर उसने सोचा उठकर देखना चाहिए ऐसा क्यों हो रहा है विशुन दरवाजे की तरफ जाकर दरवाजा खोलता है और देखता है एक औरत विशुन की तरफ पीठ किये हुए बैठी है वशुन ने पूछा आरती पर उसने कोई उत्तर नहीं दिया विशुन फिर कुछ नहीं बोला वो सीधा ऊपर कमरे में गया पर वहाँ आरती बच्चो के साथ सो रही थी विशुन ने आरती को उठा कर सारी बात बताई फिर आरती ने भी विशुन को सारी बात बताई उन दोनों ने तय किया की कल ही माकन खाली कर देंगे जैसे तैसे रात गुजरी सुबह माकन खली करने के बाद कुछ लोगो ने बताया की कुछ समय पहले एक औरत ने उस घर में आत्महत्या की थी विशुन को ये बात पहले से पता थी पर वो आत्माओ पर विस्वास नहीं करता था इसलिए विशुन ने इस बात को गंभीरता से नहीं लिया पर अब विशुन को पूरा विस्वास था कि आत्माये होती है और आत्माओ को भी दखल अंदाजी पसंद नहीं.
बीमारी
बीमारी
ये बात १९६० कि पश्चिम बंगाल के एक गांव की है शोम 10साल का था उसकी हमउम्र दोस्त पूजा जिसका घर भी शोम के घर के बगल में ही था दोनों एक ही क्लास में थे और साथ स्कूल जाना साथ ही खेलना यही दिनचर्या थी दोनों की पर कुछ दिन से पूजा की तबियत ख़राब थी इसीलिए स्कूल नहीं जाती थी शोम के स्कूल से आने के बाद दोनों बहोत खेलते पर कुछ दिन बाद वो खेलने भी नहीं आ पाती धीऱे-धीरे पूजा कमजोर होती जारही थी क्या हुआ था कोई नहीं समझ पा रहा था कई इलाज किया गया पर कुछ असर नहीं हुआ पूजा ने तो अब बात भी करना बंद कर दिया बस जिन्दा थी एक महीने से पूजा बीमार थी इसी बीच शोम माँ के साथ अपने नानी के घर गया से आते समय शोम खेत से होता हुआ घर आरहा था तभी उसने देखा एक अजीब सा डरावना प्राणी जिसके पुरे शरीर पर आंख जैसा कुछ बना था वो पूजा के शरीर को खा रहा है शोम डर रहा था फिर भी देख रहा था वो इतना डर गया था कि वो अपने माँ को भी कुछ नहीं बता पा रहा था घर पहोच कर उसने देखा पूजा का मृत शरीर उसके घर के बाहर रखा हुआ है उसके घर के सभी लोग रो रहे थे शोम आज तक नहीं समझ पाया कि अगर पूजा का मृत शरीर उसके घर था तो वो कौन थी जिसे वो अजीब सा प्राणी खा रहा था,
वो रात
वो रात
ये बात २००० की है रमेश को आज ऑफिस में देर हो गई थी रात के १२बज रहे थे रमेश अपनी कार से घर जा रहा था रस्ते में कोई भी दिखाई नहीं देरहा था ठंढ की रात थी रस्ते के दोनों तरफ सिर्फ पेड़ थे थोड़ी दूर पर उसे एक लड़का दिखाई दिया जो रमेश से लिफ्ट मांग रहा था रमेश को घर जाने की जल्दी थी इसीलिए उसने गाड़ी नहीं रोकी थोड़ा आगे जाकर उसने देखा वही लड़का फिर लिफ्ट मांग रहा है रमेश को थोड़ा डर लगने लगा ऐसा कैसे हो सकता है वही लड़का फिर आगे कैसे आ सकता है थोड़ा आगे जाने पर फिर से वही लड़का इस बार भी रमेश ने गाडी नहीं रोकी थोड़ा आगे जाने पर उसे लगा उसकी गाड़ी से कोई बहोत तेज टकराया उसने गाड़ी अचानक से रोक दी उसने देखा वही लड़का गुस्से में रमेश के गाड़ी के सामने खड़ा होकर उसे घूर रहा है रमेश गाड़ी बगल से निकल कर गाड़ी भगाने लगा वो लड़का भी रमेश के साथ-साथ दौड़ने लगा वो बिलकुल गाड़ी के बराबर दौड़ रहा था और वो आगे नहीं देख रहा था वो सिर्फ रमेश को गुस्से में घूर रहा था पर रमेश उसकी तरफ ना देखते हुए गाड़ी चलाये जा रहा था रमेश बुरी तरह डर गया था उसे एहसास हो गया था ये कोई इंसान नहीं है ये कोई बुरी आत्मा है उसने गाड़ी घर जाकर ही रोकी और उतर कर घर में जाकर दरवाजा बंद कर लिया रमेश जैसे ही घर में आगे बढ़ा किसी ने दरवाजा खटखटया रमेश ने दरवाजा नहीं खोला ऐसा कई दिनों तक चलता रहा के हर रात कोई दरवाजा खटखटाता था पर कोई बहार नहीं होता था रमेश ने अपना ऑफिस जाने का रास्ता भी बदल दिया पर वो उस रात को आज भी नहीं भूल पाया !
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