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रविवार, अगस्त 21, 2022

रविवार, अगस्त 21, 2022

पौराणिक कथा

 

भगवान शिव का परिवार

 


भारतीय पौराणिक कथाओं में प्राथमिक हिंदू त्रिमूर्ति (त्रिमूर्ति) देवताओं में से एक भगवान शिव हैं। उन्होंने देवी पार्वती से शादी की और हिमालय में कैलाश पर्वत की गुफाओं में निवास किया।कार्तिकेय और गणेश शिव और पार्वती के दो पुत्रों के नाम थे; अशोक सुंदरी उनकी बेटी थी। शिव और पार्वती की पहली संतान, कार्तिकेय, गणेश के बड़े भाई थे। कार्तिके के नाम कुमार और शनमुख भी हैं।एक बार शिव और कार्तिकेय कैलाश पर्वत को छोड़कर राक्षसों से युद्ध करने के लिए गए उन लोगों के जाने के बाद माता पार्वती को बहुत अकेलापन सा महसूस होने लगा अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए वह दिव्य वृक्ष अशोक के पास गई और एक बेटी प्राप्त करने की याचना की तब उस दिव्य वृक्ष की कृपा से माता पार्वती को एक सुंदर पुत्री प्राप्त हुई जिसका नाम अशोक सुंदरी रखा गया भगवान गणेश शिव और पार्वती के सबसे छोटे संतान थे वह सबसे लोकप्रिय देवता माने जाते हैं उन्हें विघ्नहर्ता माना जाता है और बुद्धि का देवता भी कहा जाता है ऐसा कहा जाता है कि भगवान गणेश की रचना माता पार्वती ने चंदन और हल्दी के लेप से की थी यह लेप माता पार्वती ने स्नान करने से पहले अपने शरीर को शुद्ध करने के लिए बनाया था

शिव और उनके सेवक



भगवान शिव के कई भक्तगण थे जिनके चेहरे बहुत भयानक और अलौकिक थे उनमें से सबसे प्रमुख नंदी थे नंदी को भगवान शिव का वाहन और उनका द्वारपाल भी कहा जाता है पौराणिक कथाओं में कहा जाता है कि नंदी ऋषि शिलाद के पुत्र थे जोकि भगवान शिव की बहुत बड़े भक्त थे उन्होंने एक बार तपस्या की और भोलेनाथ से कहा कि उन्हें हमेशा अपने साथ रखें भोलेनाथ मुस्कुराए और नंदी को सहस स्वीकार कर लिया तब भोलेनाथ जी ने नंदी को बताया कि उन्होंने अपना बैल खो दिया जिस पर भोलेनाथ यात्रा किया करते थे इसी कारण नंदी को एक बैल का चेहरा मिलेगा और वह भोलेनाथ का वाहन होगा तथा उन्होंने नंदी से यह भी कहा कि आप हमेशा मेरे दोस्त बने रहेंगे और हमेशा साथ रहेंगे

भोलेनाथ की गणों में नंदी सबसे खास थे वीरभद्र और शिव के समस्त गण नंदी की आज्ञा का पालन करते थे शिव के समस्त गण शिव भक्ति में हमेशा लीन रहते थे और भोलेनाथ की आज्ञा का पालन करते थे



सभी गण माता पार्वती से ज्यादा भोलेनाथ की आज्ञा का पालन करते थे 1 दिन माता पार्वती स्नान करने जा रहे थे तब उन्होंने नंदी से कहा कि दरवाजे पर पहरा दे और कोई भी अंदर ना आ सके ऐसा कहकर माता पार्वती स्नान के लिए चली गई और नंदी दरवाजे पर पहरेदारी करने लगा कुछ देर बाद भोलेनाथ वहां पहुंचे नंदी बहुत भ्रमित हो गए नंदी भोलेनाथ के बहुत बड़े भक्त थे उन्होंने सोचा मैं स्वामी को अपने ही घर में प्रवेश करने से कैसे रोक सकता हूं अतः उन्होंने भोलेनाथ से कुछ नहीं कहा जब भोलेनाथ अंदर गए तब माता पार्वती उन्हें सामने देख कर बहुत शर्मिंदा हुई वह शिव जी के अचानक प्रवेश से प्रश्न नहीं थी और वह नंदी की इस असावधानी से बहुत क्रोधित हुई उन्हें ऐसा महसूस होने लगा कि यहां के समस्त गण सिर्फ शिव जी के वफादार हैं मुझे भी कोई ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता है जो मेरी भी आज्ञा का पालन करें जब भोलेनाथ कुछ दिनों बाद पर्वत पर चले गए तब माता पार्वती ने भगवान गणेश की रचना की.

 

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गुरुवार, मई 21, 2020

गुरुवार, मई 21, 2020

अश्‍वत्थामा

क्या अश्‍वत्थामा आज भी जिन्दा है   



 अश्‍वत्थामा का जन्म द्वापर युग में हुआ था वे गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र थे अश्‍वत्थामा का बचपन बहोत ही दुखो से गुजरा उनके जन्म के समय समय द्रोणाचार्य के पास अपनी पत्नी और पुत्र के पालन पोसन के लिए पर्याप्त धन नहीं था,गुरु द्रोणाचार्य ने पांडवों को अश्त्र-शस्त्र की विद्या दी थी, अश्‍वत्थामा भी अपने पिता की भांति अश्त्र -शस्त्र में निपुण था,अश्‍वत्थामा ने युद्ध की कला अपने पिता से नहीं अर्जित की थी उन्होंने और कई महपुरुसो जैसे परसुराम .दुर्वासा ,भीष्म .कृपाचार्य आदि से भी ली थी भगवन श्री कृष्णा के सामान अश्‍वत्थामा भी ६४ कलाओ और १८ विद्याओ में भी निपूर्ण था परन्तु महाभारत के युद्ध में गुरु द्रोणाचार्य ने और  अश्‍वत्थामा ने हस्तिनापुर राज्य के प्रति अपनी निष्ठा होने के कारन युद्ध में कौरवों का साथ दिया था,वह एक माहान योद्धा था  एक बार भीष्मपितामह ने उसकी प्रसंशा में कहा था की ''अश्‍वत्थामा  महारथी है धनुर्धारियों में श्रेष्ठ है विचित्र युद्ध करने वाले और विचित्र प्रहार करने वाले युद्ध में तो मनो यमराज जान पड़ते है किन्तु उनमे एक दोस भी है उनको अपना जीवन अति प्रिय है मृत्यु से दर के कारन वे युद्ध से जी चुराते है इस कारन न तो उन्हें रथी  मानता हु न तो अतिरथी'' महाभारत के युद्ध में गुरु द्रोणचार्य और  अश्‍वत्थामा को हराना मुश्किल हो रहा था तब भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर के साथ मिलकर कूटनीति का सहारा लिया और युद्ध में ये बात फैला दी के अश्‍वत्थामा मारा गया यह सुनकर गुरु द्रोणचार्य बिना सत्य जाने पुत्र के मृत्यु वियोग में शस्त्र छोड़कर जमींन पर बैठ गए तभी द्रुपत पुत्र ध्रिस्त्धुम्न ने उनका वध कर दिया पिता के मृत्यु से अश्‍वत्थामा विचलित हो गया और पांडवों के सभी पुत्रो का वध कर दिया तथा पांडव कुल को पूर्ण समाप्त करने के लिए उत्तरा के गर्भ मे पल रहे अभिमन्यु के पुत्र परिक्छित को मरने के लिए बर्ह्माश्त्र चलाया तब भगवान श्री कृष्ण ने परिक्छित को बचाने के लिए दंड स्वरुप अश्‍वत्थामा के माथे पर लगी मणि निकल कर उसे तेजहीन कर दिया और उसे शाप दिया की वो युगो-युगो तक भटकता रहेगा,
माना जाता है कि  अश्‍वत्थामा का वजूद आज भी है मध्य प्रदेश में बुरहानपुर से २० किमी दूर असीरगढ़ किले में स्तिथ भगवान शिव का मंदिर है जहाँ  अश्‍वत्थामा आज भी पूजा करने आता है और पूजा करने से पूर्व किले के तालाब में स्नान करता है,वहां के निवासी  अश्‍वत्थामा से जुडी कई कहानियां सुनाते है उनके अनुसार  अश्‍वत्थामा को जिसने भी देखा वो पागल हो गया गांव वाले अश्‍वत्थामा से मिलते जुलते वयक्ति के देखे जाने का दावा करते दावा सिर्फ देखे जाने का नहीं दावा ये के जिसने भी उसे देखा वो या किसी न किसी बीमारी से उसकी मृत्यु हो गई या जो जीवित बचा भी उसे या तो लकवा मार गया या तो पागल हो गया
, अश्‍वत्थामा के भटकने का उल्लेख मध्य प्रदेश के ही जबलपुर शहर में गौरीघाट नर्मदा नदी के किनारे भी मिलता है कहा जाता है  अश्‍वत्थामा कभी -कभी अपने मस्तक के घाव के लिए तेल व हल्दी कि मांग करते दिखाई देते है इस बात में कितनी सच्चाई है ये कहना  मुश्किल है!