प्रकृति के ५ तत्व होते है पृथ्वी,जल,अग्नि,वायु,और आकाश प्रकृति में बदलाव इन्ही ५ तत्व से होते है और इन्ही ५ तत्व और ३ गुणों सत्व,राज,और तम की वजह से होते है ये ५ तत्व संसार की हर चीज पर मौजूद होते है गीता के दूसरे अध्याय में आत्मा का के बारे में बताया गया है ये पूरी सृस्टि आत्मा और प्रकृति के मिलान से बनी है इस संसार में हमें जो भी बदलाव दिखाई देता है वह पृकृति में होता है आत्मा में नहीं परन्तु ये बदलाव आत्मा के आधार से होता है आत्मा अपरिवर्तनशील,सर्वव्यापी,अजन्मा,अव्यक्त और विकार रहित होता है लेकिन प्रकृति परिवर्तनशील विकरवाली होती है,
आत्मा एक ऐसी जीवन शक्ति है जिसके बल पर हमारा शरीर जिन्दा रहता है इसी शक्ति से हमारा शरीर चलता है इसके जीवन शक्ति के बिना हमारे प्राण छूट जाते है और हम मिटटी में फिर मिल जाते है जब शरीर से आत्मा अर्थात जीवन शक्ति निकलती है तो शरीर मर जाता है वापस मिटटी में मिल जाता है इसी तरह आत्मा फिर परमात्मा के पास लौट जाती है,आत्मा आड़ू है बेहद छोटी है परमात्मा आकाश की तरह सर्व व्यापक है,आत्मा का ज्ञान सिमित है ही परमात्मा सर्वज्ञ है वह सबकुछ जनता है,जो कुछ हो रहा है या हो चूका है उसे सब पता है आत्मा की शक्ति सिमित है परन्तु परमात्मा सर्वशक्तिमान है दुनिया को बनाना चलाना प्रलय करना आदि वह सभी काम करने में वह समर्थ है आत्मा और परमात्मा दोनों ही अजन्मा व् अनंत है ये न कभी पैदा होते है न कभी मरते है इनको बनाने वाला कोई नहीं है आत्मा परमात्मा का अंश नहीं है हर आत्मा का अपनी सत्ता होती है,
आत्मा के ३ स्वरूप होते है जीवात्मा,प्रेतात्मा,सूक्ष्मआत्मा जो एक भौंतिक शरीर में वास करती है उसे जीवात्मा कहते है,जब इस जीवात्मा का वासना और कामनामय शरीर में निवास होता है तब उसे प्रेतात्मा कहते है,यह आत्मा जब सूक्ष्मतम शरीर में प्रवेश करती है तब उसे सूक्ष्मआत्मा कहते है जब भी कोई मनुष्य मरता है और आत्मा शरीर को त्याग कर उत्तर कार्यो के बाद यात्रा प्रारम्भ करती है तब उसे ३ मार्ग मिलते है उसके कर्मो के अनुसार उसे एक मार्ग दिया जाता है ये ३ मार्ग अर्चि मार्ग,धूम मार्ग,उत्पत्ति विनास मार्ग होते है अर्चि मार्ग देवलोक की यात्रा के लिए होता है,धूम मार्ग पृतलोक की यात्रा के लिए और उतपत्ति विनास मार्ग नर्क लोग की यात्रा के लिए होता है,
जब आत्म शरीर त्याग करता है तो उसे यमदूत लेने आते है इसका जिक्र गरुण पुराण में भी मिलता है जिस मनुस्य के जैसे कर्म होते है वे उसे वैसे ही ले जाते है पुण्यात्मा को बहुत ही सम्मान के साथ दुरात्मा को दंड देते हुए ले जाया जाता है गरुण पुराण में बताया गया है की मृत्यु के बाद आत्मा को २४घण्टो के लिए ही ले जाया जाता है जहा उसे उसके द्वारा किये गए पापो और पुण्यो के बारे में बताया जाता है इसके बाद आत्मा को वापस उसी जगह १३ दिनों के उत्तर कार्यो लिए छोड़ दिया जाता है जहा उसने शरीर का त्याग किया था,
१३दिनो के उत्तर कार्यो तक वह वही रहता है १३ दिन बाद आत्मा फिर यमलोक की यात्रा करती है अच्छे और बुरे कर्मो के कारन मृत आत्माओ को अच्छा या बुरा माना गया है अच्छी आत्माये अच्छे कर्म करने वालो के माध्यम से तृप्त होकर उसे भी तृप्त करती है और बुरी आत्माये बुरे कर्म करने वालो के माध्यम से तृप्त होकर उसे बुराई करने लिए प्रेरित करती है इसलियर धर्म अनुसार अच्छे कर्म के अलावा धार्मिकता और ईश्वर की भक्ति अति आवस्यक तभी आप दोनों ही तरह के आत्माओ से बच सकते है
भूत प्रेतों की शक्ति और गति अपार होती है इनकी विभिन्न जातीय होती है और इन्हे भूत,प्रेत,पिसाच,यम,शकिनी,डाकिनी,चुड़ैल आदि कहा जाता है एक शरीर से जब दूसरे शरीर से आने-जाने वाली जीवात्मा जब वर्तमान शरीर से निकल जाती है तो उसके साथ जब प्राण व् इन्द्रिय ज्ञान भी निकल जाता है तो मृत शरीर में क्या बाकि रह जाता है यह नजर तो कुछ नहीं आता है असल में परब्रह्म उसमे रह जाता है जो हर चेतन और जड़ प्राणी व् प्रकृति में सभी जगह पूर्ण शक्ति व् स्वरूप में हमेसा मौजूद है,
ऐसा माना जाता है मानव शरीर नस्वर है जिसने जन्म लिया उसे एक न एक दिन शरीर त्यागना ही पड़ता है भले ही मनुष्य या कोई अन्य जीवित प्राणी हो चाहे वो सौ वर्ष क्यों न जी ले परन्तु अंत में उसे शरीर त्याग कर परमात्मा के पास वापस जाना ही पड़ता है जहा से वो आया था!
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